चलते चलते जीवन के सफर में
एक अनोखी आवाज़ सुनने को आई
कभी हँसती थी कभी रोती थी वोह
दूर से लगती थी धुंधली धुंधली परिछायी
बात भी उसकी कुछ समझ नहीं आती थी,
वोह बार-बार बतलाती थी
कि तुम्हारी कितनी अच्छी दुनिया है,
जितने भी वहम है मन में सब महज गलतफहमियां हैं
आत्मविश्वास का परचम लेके तुम
खुद पर बस एतबार करो
नफरत करके बहुत देख ली
एक बार तोह खुद से प्यार करो
तुम जब जब दिल से कुछ चाहोगे
कायनात साथ तुम्हारे साथ लग जायेगी
खुद को जब सराहोगे
परेशान रूह संभल जाएगी
उम्मीद के भरोसे न रहना तुम
सब कसमें इसने तोड़ी है
इस मतलबी जमाने ने
एक कोहरे की चादर ओढ़ी है
और खुशी खुशी रहने की बस
बहुत थोड़ी जगह छोड़ी है
असलियत का दर्पण लेके तुम
बस खुद पर तुम एतबार करो
बरकत दूसरों से बहुत माँग ली
एक बार तोह खुद से प्यार करो
अमित निरंजन
जून अंक
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