जिनकी कृपा कटाक्ष से ,प्रज्ञा , बुद्धि , विचार ।
शब्द,गीत,संगीत ,स्वर ,विद्या का अधिकार ।।
विद्या का अधिकार ,ज्ञान ,विज्ञानं ,प्रेम -रस ।
हर्ष , मान ,सम्मान ,सम्पदा जग की सरबस ।
' ठकुरेला ' समृद्धि , दया से मिलती इनकी ।
मंगल सभी सदैव , शारदा प्रिय हैं जिनकी ।।
अपनी अपनी अहमियत , सूई या तलवार ।
उपयोगी हैं भूख में , केवल रोटी चार ।।
केवल रोटी चार , नहीं खा सकते सोना ।
सूई का कुछ काम , न तलवारों से होना ।
'ठकुरेला' कविराय , सभी की माला जपनी ।
बड़ा हो कि लघुरूप , अहमियत सबकी अपनी ।।
सोना तपता आग में , और निखरता रूप ।
कभी न रुकते साहसी , छाया हो या धूप ।।
छाया हो या धूप , बहुत सी बाधा आयें ।
कभी न बनें अधीर ,नहीं मन में घवरायें ।
'ठकुरेला' कविराय , दुखों से कैसा रोना ।
निखरे सहकर कष्ट , आदमी हो या सोना ।।
नारी का सौन्दर्य है , उसका सबल चरित्र ।
आभूषण का अर्थ क्या , अर्थहीन है इत्र ।।
अर्थहीन है इत्र ,चन्द्रमा भी शरमाता ।
मुखमण्डल पर तेज, सूर्य सा शोभा पाता ।
'ठकुरेला' कविराय ,पूछती दुनिया सारी ।
पाती मान सदैव ,गुणों से पूरित नारी ।।
रत्नाकर सबके लिए ,होता एक समान ।
बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान ।।
सीप चुने नादान,अज्ञ मूंगे पर मरता ।
जिसकी जैसी चाह,इकट्ठा वैसा करता ।
'ठकुरेला' कविराय ,सभी खुश इच्छित पाकर ।
हैं मनुष्य के भेद ,एक सा है रत्नाकर ।।
होता है मुश्किल वही, जिसे कठिन लें मान ।
करें अगर अभ्यास तो, सब कुछ है आसान ।।
सब कुछ है आसान, बहे पत्थर से पानी ।
यदि खुद करे प्रयास , मूर्ख बन जाता ज्ञानी ।
'ठकुरेला' कविराय , सहज पढ़ जाता तोता ।
कुछ भी नहीं अगम्य, पहुँच में सब कुछ होता ।।
थोथी बातों से कभी , जीते गये न युद्ध ।
कथनी पर कम ध्यान दे, करनी करते बुद्ध ।।
करनी करते बुद्ध , नया इतिहास रचाते ।
करते नित नव खोज , अमर जग में हो जाते ।
'ठकुरेला' कविराय ,सिखातीं सारी पोथी ।
ज्यों ऊसर में बीज , वृथा हैं बातें थोथी ।।
भातीं सब बातें तभी ,जब हो स्वस्थ शरीर ।
लगे बसंत सुहावना , सुख से भरे समीर ।।
सुख से भरे समीर ,मेघ मन को हर लेते ।
कोयल ,चातक मोर , सभी अगणित सुख देते ।
'ठकुरेला' कविराय , बहारें दौड़ी आतीं ।
तन ,मन रहे अस्वस्थ , कौन सी बातें भातीं ।।
हँसना सेहत के लिए , अति हितकारी मीत ।
कभी न करें मुकाबला , मधु ,मेवा , नवनीत ।।
मधु ,मेवा ,नवनीत ,दूध ,दधि ,कुछ भी खायेँ ।
अवसर हो उपयुक्त , साथियो हँसे - हँसायें ।
'ठकुरेला' कविराय ,पास हँसमुख के बसना ।
रखो समय का ध्यान , कभी असमय मत हँसना ।।
धीरे धीरे समय ही , भर देता है घाव ।
मंजिल पर जा पंहुचती , डगमग होती नाव ।।
डगमग होती नाव ,अंततः मिले किनारा ।
मन की मिटती पीर , टूटती तम की कारा ।
'ठकुरेला' कविराय , खुशी के बजें मजीरे ।
धीरज रखिये मीत , मिले सब धीरे धीरे ।।
तिनका तिनका जोड़कर , बन जाता है नीड़ ।
अगर मिले नेत्तृत्व तो , ताकत बनती भीड़ ।।
ताकत बनती भीड़ , नये इतिहास रचाती ।
जग को दिया प्रकाश , मिले जब दीपक , बाती ।।
'ठकुरेला' कविराय ,ध्येय सुन्दर हो जिनका ।
रचते श्रेष्ठ विधान ,मिले सोना या तिनका ।।
बढ़ता जाता जगत में , हर दिन उसका मान ।
सदा कसौटी पर खरा , रहता जो इंसान ।।
रहता जो इंसान , मोद सबके मन भरता ।
रखे न मन में लोभ , न अनुचित बातें करता ।
'ठकुरेला' कविराय ,कीर्ति - किरणों पर चढ़ता ।
बनकर जो निष्काम , पराये हित में बढ़ता ।।
यह जीवन है बाँसुरी , खाली खली मीत ।
श्रम से इसे संवारिये , बजे मधुर संगीत ।।
बजे मधुर संगीत , ख़ुशी से सबको भर दे ।
थिरकेँ सब के पाँव , हृदय को झंकृत कर दे ।
'ठकुरेला' कविराय , महकने लगता तन मन ।
श्रम के खिलें प्रसून , मुस्कराता यह जीवन ।।
छाया कितनी कीमती , बस उसको ही ज्ञान ।
जिसने देखें हों कभी, धूप भरे दिनमान ।।
धूप भरे दिनमान , फिरा हो धूल छानता ।
दुख सहकर ही व्यक्ति , सुखों का मूल्य जानता ।
'ठकुरेला' कविराय , बटोही ने समझाया ।
देती बड़ा सुकून , थके हारे को छाया ।।
जीवन के भवितव्य को, कौन सका है टाल ।
किन्तु प्रबुद्धों ने सदा ,कुछ हल लिये निकाल ।।
कुछ हल लिये निकाल , असर कुछ काम हो जाता ।
नहीं सताती धूप , अगर सर पर हो छाता ।
'ठकुरेला' कविराय ,ताप काम होते मन के ।
खुल जाते हैं द्वार , जगत में नव जीवन के ।।
जीवन जीना है कला , जो जाता पहचान ।
विकट परिस्थिति भी उसे , लगती है आसान ।।
लगती है आसान , नहीं दुःख से घबराता ।
ढूढ़े मार्ग अनेक , और बढ़ता ही जाता ।
'ठकुरेला' कविराय ,नहीं होता विचलित मन ।
सुख-दुख , छाया-धूप , सहज बन जाता जीवन ।।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
आबू रोड (राजस्थान )
जून अंक
No comments:
Post a Comment