सब ढूंढते मजहब
मैं ढूंढता रोटी,
कोई है शीश महलों में
मेरी तो छत टपकती है,
तुम्हें तो छाँव झुलसाती
मिले मुझे धूप में मोती,
तुम्हारे भोग हैं छप्पन
मैं कंकड़ पकाता हूँ,
तुम्हारी बिस्लरी बोतल
मेरा मटके का पानी है,
तुम्हें ए.सी. की ठंडक है
मुझे तो ओस सहलाती,
तुम शावर नहाते हो
मुझे वर्षा की रिमझिम है,
तुम्हें सर्दी में हीटर है
मुझे सूरज ये गुनगुन है,
तुम्हारे मखमली बिस्तर
मेरा धरती बिछौना है,
तुम्हें सुविधा के सपने हैं
मुझे मेहनत सुलाती है।
2.
व्यथित हुआ क्यों मन के मीत
हैं बड़े मधुर जीवन के गीत
चंचल चंद्र की ललित कलाएँ
बढ़ती घटती फिर बढ़ती जाँए
रजनी में राजा सा खिलता
किंतु प्रात: रंक सा ढलता
क्या मानी उसने हार या जीत
व्यथित हुआ क्यों मन के मीत
विटप कभी पुष्पज को धरते
श्रृंगार कभी फूलों का करते
कुम्भला कर सब धरा पे गिरते
फिर पर्णी नव कोपल सजते
तरुवर के क्या हृदय में पीर
व्यथित हुआ क्यों मन के मीत
तटिनी सबका पोषण करती
कल कल कल बहती रहती
कभी धरा जलमग्न है करती
भूमि में उर्वरता भरती
जलमाला फिर भी न रुकती
व्यथित हुआ क्यों मन के मीत
हैं बड़े मधुर जीवन के गीत
दिनकर की है लालिमा
नव्य रश्मि की कोमलता
स्वच्छंद गगन की उन्मुकता
पुहुप लिए ज्यों कोमलता
झंकार सांस ये जीवन गीत
व्यथित हुआ क्यों मन के मीत।
3.
हृदय आज उठा मचल
देख गगन पनघट पर
चन्द्र की गागर हिलोर
तारे मनहुं हुए जलज
नव दल, नव पुष्प कमल
नव प्रभात किरण नवल
गूंज उठा खगकुल चहल
महक उठा विश्व महल
ओस की ज्यों बूंद सजी
सुमन के जा माथ लगी
भ्रमर करे गूंज गीत
कलियन की तंद्रा टूटि
मोर नृत्य मग्न हुआ
कोकिल ने कूक किया
नभ में नव भानु उदित
अर्चना को थाल सजित
हृदय आज उठा मचल
नव जीवन, नवल जगत
नव शक्ति, हृदय नवल
नवल रश्मि, नव प्रभात
तरुवर के नवल पात
नैन आज हुए सजल
हृदय आज उठा मचल।।
अर्चना मिश्रा
अप्रैल अंक
2 comments:
तीनों सुन्दर रचनाएँ ...
वाह... तीनों कविताओं का अर्थगाम्भीर्य सराहनीय है।👍
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