प्रतिपल वह श्रम करता है,
कभी नहीं वह थकता है,
ग्रीष्म, शीत, वर्षा को सह,
चूते छप्पर के नीचे रह,
हालत उसकी पहचानो तो,
एक दीया किसानों को।
जीवन के झंझावातों को,
सह लेता है हो नीरव,
परती खेती का वक्ष चीर,
परहित करता है परमवीर,
उसकी व्यथा को जानो तो,
एक दीया किसानों को।
फटे-पुराने पहन वसन,
अभिलाषा का करके हनन,
सघन क्षेत्र हो या निर्जन,
ग्रीष्म, शरद हो या वर्षण,
काया करती जो स्वेद-त्याग,
मेघ गरजकर जाते भाग,
झुककर चुनता प्रति दानों को,
एक दीया किसानों को।
सुखी रोटी और चने चबा,
सार्वजनिक करता नहीं व्यथा,
करता रहता अनवरत श्रम,
चिंतित रहता है हरदम,
फसलों का करता है सींचन,
अच्छी खेती का कर चिंतन,
उसकी बातों को मानो तो,
एक दीया किसानों को।
-यमुना धर त्रिपाठी
मई अंक
1 comment:
किसानों के मर्म को अभिव्यक्त करती हुयी सुन्दर रचना। साधुवाद
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