Tuesday, May 12, 2020

कर्म कर-सत्कर्म कर- यमुना धर त्रिपाठी


एक नवीन आरम्भ कर,
प्रयास से प्रारंभ कर,
हार से न डर कभी,
क्लिष्ट हो या हो हठी,
श्रम कर प्रयास कर,
कोशिशें अनायास कर,
कर्म कर-सत्कर्म कर।
कर्म कर-सत्कर्म कर।।1।।


श्रेष्ठ कर्म आज कर,
भूत की न बात कर,
आगमन से तू न डर,
निश्चिन्त हो रह निडर,
दुर्गम दुरूह पथ पर,
त्यागकर आगे निकल,
पर कर्म कर-सत्कर्म कर।
कर्म कर-सत्कर्म कर।।2।।

अग्नि सा उन्नत अटल,
हो गगन सा निश्छल,
सागर सा होकर गंभीर,
पर्वत सा होकर अति धीर,
सरिता सा निर्झर-उत्कल,
वायु सा हो व्याप्त सरल,
पर कर्म कर-सत्कर्म कर।
कर्म कर-सत्कर्म कर।।3।।

कठोर हो, निर्विघ्न हो,
अति सौम्य हो, उद्विग्न हो,
प्रसन्न हो, अति मग्न हो,
एकांत हो, संलग्न हो,
अतिशिष्ट हो, उन्मत्त हो,
अतिरिक्त हो, संतप्त हो,
पर कर्म कर-सत्कर्म कर।
कर्म कर-सत्कर्म कर।।4।।

युद्ध में सन्नद्ध हो,
काव्य छंदोबद्ध हो,
लक्ष्य हेतु प्रतिबद्ध हो,
नीति से आबद्ध हो,
चाहे जो प्रारब्ध हो,
लेखन चरणबद्ध हो,
पर कर्म कर-सत्कर्म कर।
कर्म कर-सत्कर्म कर।।5।।


यमुना धर त्रिपाठी
मई अंक

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