अभी कल की ही बात थी
और चेहरे पर तेरे मीठी मुस्कान थी
काफिलों के साथ चलते-चलते
दिलों में सबके, तेरी एक पहचान थी
जब डगमगा जाते थे कदम
मुसीबतों में हाथ थाम लेता था
हसरतों में होती थी जब उलझन
मिन्नतों को वरदान बना देता था
मेहनत की इबादत से
सपनों को हक़ीक़त बना देता था
बरक़त की सौगात से
खंडहर को इमारत बना देता था
करिश्मे के आभा के तले
तेरी किस्मत साथ थी
जैसे फ़रिश्ते की महिमा तेरे पास थी
अभी कल की ही बात थी
अमित निरंजन
मई अंक
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