तुम्हे बर्षा से प्यार है
फिर भी थोड़ी सी बारिश की छींटों से छतरी के नीचे रहना पसंद है।
तुम्हे धूप से प्यार है
फिर भी सूरज की बदन जलने से छाया की झूले में रहना पसंद है।
तुम्हे हवा से प्यार है
फिर भी हवा टुटने पर आंधी चले तो बंद दरवाजा में रहना पसंद है।
तुम्हे स्रोत से प्यार है
फिर भी समुद्र की लहरदार लहरें छोड़कर भाटा में रहना पसंद है।
मुझे पता है
तुम मेरा प्यार हो
फिर भी डर है अगर तुम्हें दूसरों के प्यार में रहना पसंद है।
बि सि दास / मुम्बाई
मई अंक
1 comment:
भावपूर्ण रचना। ज्वार भाटा की अच्छी तुलना।
Post a Comment