आजकल मैं घर में झाड़ू लगाती हूं,
घर में ही रहकर लॉक डाउन मनाती हूं ।
सुबह की चाय पीकर बुहारी उठाती हूं,
सफाई के अभियान में कमर-कस जुट जाती हूं,
इस दौरान मैं कभी झुकी ,कभी उकड़ूँ ,
और कभी -कभी ऊंची खड़ी भी हो जाती हूं।
पोछा लगाना होता है थोड़ा कठिन ,
इसके लिए पहले थोड़ी हिम्मत जुटाती हूं, कभी पैरों पर बैठ ,कभी घुटनों को टेक और कभी हाथों को फर्श पर टिकाती हूं ,
राम और हनुमान की जय -जयकार करते हुए इस परीक्षा में पास भी हो जाती हूं ,।
आजकल मैं घर में झाड़ू लगाती हूं ।
हाथ -पैर चलते हैं ,मन भी थिर नहीं रहता, सोचती हूं, इसमें कितने आसन कर जाती हूँ,!! पर्वतासन ,ताड़ासन, कुक्कुटासन में सफाई कर थक कर जब लेटूँ तो शवासन में चली जाती हूं ,।
आजकल मैं घर में झाड़ू लगाती हूँ।
इधर -उधर कहीं कुछ गंदा अगर छूट जाए ,
उस तरफ से चुपके से आंखें हटा लेती हूं ,
मन में चुभन होती है ,लज्जा -सी आती है, **सेविका*के साथ भी क्या ऐसा कर पाती हूँ??
करती हूँ विश्राम जिनके श्रम के बल पर ,
क्या उनके श्रम का मूल्य मैं दे पाती हूँ???
समझ में अब आता है *श्रम तो अमूल्य है ***
उसको पैसों से क्यों तौलना मैं चाहती हूं!!!
अपने सहायकों,अपने शुभचिंतकों के प्रति,
कृतज्ञता के भाव से शीश मैं झुकाती हूँ!!!
आजकल घर में मैं झाड़ू लगाती हूँ !!
घर में ही रहकर लॉक डाउन मनाती हूँ!!
सरोजिनी पाण्डेय
मई अंक
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