Monday, September 22, 2008

कुछ क्रियान्वित करें

कहीं किसी के मुख से
सुना मैंने
सुना तुमने
सोचा कि चलो
सुने हुए को
कुछ क्रियान्वित करें
सपनों से हम
वास्तविक
धरातल पर उतरें
हम उतरने ही वाले थे कि
सामने देखा
अस्त-व्यस्त हालत में
एक हम सा
"सुने हुए को क्रियान्वित करने वाला"
आ रहा था
अपने फटे लबादे के साथ
हमने देखा उसका हालात
हमारा सारा साहस
छुप गया विचारों की ओट मे
तब तक तुमने कहा
कि अब हम कुछ नहीं
कर सकते
आओ अब लौट चले
हाँ
समस्या ये नहीं है कि
लोग वास्तविक धरातल पर
आना नहीं चाहते
पर समस्या इस बात की है कि
उस धरातल पर आकर वे
अपना अमन चैन खोना नहीं चाहते
बस इसीलिये वे
"सुने हुए को क्रियान्वित"
करना नहीं चाहते।

3 comments:

shelley said...

उस धरातल पर आकर वे
अपना अमन चैन खोना नहीं चाहते
बस इसीलिये वे
"सुने हुए को क्रियान्वित"
करना नहीं चाहते।
achchhi kavita hai.

Er. सत्यम शिवम said...

very well thought about social matter.....ek help chahta hu....i m student of enginerring...poetry is my passion ...maine apna blog bhi banaya hai ...jispar maine apni kuch kavita ki kuch panktiyan di hai....mai kaise use share karu....ki sab use dekh sake plz help me..........www.satyamshivam95.blogspot.com

santosh sharma said...

bahut sunder kavita sabhi.
ekdam hamare hi aas pass ki vastaviktao se parchya karati hui