चाँदनी रात की हँसी हमें भाती नहीं
जब तक हामारे खेमे में अँधेरा है
हमें पूर्णिमा बिल्कुल सुहाती नहीं
जब तक अमावस्या का अँधेरा है
बातें बनाने से कुछ नही होगा
जब तक हम हकीकत पर उतर न आयें
तुम्हें आजमाने से कुछ नही होगा
जब तक हम स्वयं निखर न आयें
मात्र राहत दिलाने से कुछ नही होगा
जब तक सामग्री मेरे घर न आये
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