Monday, September 29, 2008

अपने घिनौने राष्ट्रदोही कृत्यों पर थोड़ा शरमाएँ

कल तक खिलखिला रहे थे

चेहरे जिनके

आज उन्हीं चेहरों पर

उदासी छायी है

कल तक जो खूब वकालत करते थे

आतंकवाद और आतंकवादियों की

आज उनके चेहरों पर खामोशी छायी है

इस परिवर्तन के पीछे कोई

बड़ा कारण नही है

यह तो आदत में शुमार है

उनके............

यह उनकी, इनकी, सबकी आदत है यहाँ

या यो कहे यही "मानवता" है

कि जब तक दूसरे मरते रहते हैं

जब तक दूसरों की कत्ल होती रहती है

जब तक दूसरे बचाव की
गुहार लगाते रहते हैं

तब तक इनके, उनके, सबके

कानों में रुई ठूंसी रहती है

कुछ सुनाई नही देता

आँखों पर पट्टी बँधी रहती है

कुछ दिखायी नही देता

दिखायी भी क्यों दे?

सुनाई भी क्यों दे?
चाहते भी कहाँ हैं ये

देखना, सुनना और कुछ

सार्थक प्रतिक्रिया करना

ये तब तक नही देखते हैं

तब तक नहीं सुनते हैं

तब तक नहीं कुछ भी सार्थक कहते हैं

जब तक इन पर आँच न आये

जब तक ये सुरक्षित हैं

तब तक मुलायम तकियों का

सहारा ले सोते रहेंगे

और कुछ सार्थक बोलेंगे नहीं

बस..........

साम्प्रदायिक ताकतों को गैरसाम्प्रदायिक

और गैरसाम्प्रदायिक को

साम्प्रदायिक कहते रहेंगे।

और जब इन पर कोई आँच आयेगी

तब बिलखेगे

छोटे बच्चों से भी बढ़कर

जब तक इन पर कहर नही बरपता

तब तक ये आतताइयों को

अपने शब्दों से

अपने धन से

अपने जनबल से

अपनी सम्पूर्ण ताकत से

संरक्षण देते रहेंगे

और पूर्ण मह्नोयोग से

सरकारे पैसा डकारकर

पेट पर हाथ फेरेते हुए

हमारे तथाकथित"बुद्धजीवियों" के

गढ़ में
भारत को

गरियायेंगे

और इस पर रंगे सियार बुद्धजीवी
फ़ख्र से मुस्कुराएंगे
और तालियाँ बजायेंगे।

पालेगे ये आस्तीन के साँप

और तब तक देगे उनको संरक्षण

तब तक करेंगे उनका संवर्धन

तबतक करेंगे उनकी
वंशवृद्धि
पर यह एक सत्य है
अकाट्य सत्य !
जिससे भारतीय इतिहास
समय-समय पर
वाकिफ होता रहा है
पर भारतीय उससे कभी सबक नही लेते
और फिर-फिर दोहराते रहते हैं
उसी सत्य को कि...................
आस्तीन में साँप पालना
घातक होता है
वह न केवल पालने वाले
को बर्बाद करता है
अपितु उसके वंशजों के
भी घर उजाड़ता है
साक्षी है इसका हमारा इतिहास भी
चाहे कितना ही
वामपंथी उसे पढ़ाने न दें
पर हमारे स्मारक उसका
ज्ञान करा ही देते हैं।
अतः आस्तीन के साँप पालकर
उनको नचाकर तमाशा दिखाने वालों को
बाज आना चाहिये अन्यथा
वह दिन बहुत दूर नहीं है जब
अपनों की कराह से
मर्मान्तक पुकार से
चीखते अपने सम्बन्धियों के कण्ठों को सुनकर
विवश होकर उनको
अपनी आँख खोलनी पड़ जायेगी
जलेगा उनका मकाँ भी
और उन्हें भी अपनी हवेली
छोड़नी पड़ जायेगी
अतः आतंक के ठेकेदारो को शह देने से
उनकी तरफदारी करने से
उनको अपना मेहमान बनाने से
और व्यर्थ में पुलिस व भारत सरकार
प्रदेश सरकारों को
बदनाम करने से बाज आयें
और अपने घिनौने राष्ट्रदोही
कृत्यों पर
थोड़ा शरमाएँ