इस नीली नीली धरती में, एक लाल भू का भाग है,
यह पानी सा बहता लहू, लग रही धरा में आग है |
यह कैसा विचित्र द्र्श्य है, भाई का भाई काल है,
समय हुआ ज्वलनशील, लग रही हृदय में आग है |
इसी बीच रणभूमि के, यह कौन योद्धा आया है?
सारथी जिसके स्वयं प्रभु, कहर जिसने बरपाया है |
है कौन यह जो बचा रहा, है अपने भाइयो की साख,
पेड़ो, टहनियों, पत्तों के बीच दिखती जिसे चिड़िया की आँख |
भुजा है जिसके वज्र समान, रौरव है उसका ये क्रोध,
एकाग्रता है परम शस्त्र, ना बाधा है न है अवरोध |
अभिमन्यु जैसा वीर पुत्र, भीम जैसा भीम भाई,
पांडु जैसा महान पिता, कुंती है जिसकी माई |
आंखो में है जिसके अग्नि, रण लड़ना जिसका काम है,
द्रोणाचार्य का परम शिष्य, अर्जुन उसका नाम है |
अर्जुन उसका नाम है, कर्म ही जिसका धर्म है,
जज्बा है सीने में धंसा, अधर्म के लिए ना नर्म है |
है अर्जुन हर एक शख्स वो, जिसको खुद की पहचान है,
फल की चिंता नहीं जिसे, सिर्फ कर्म पर ही ध्यान है |
द्वेष ना कोई रखता है, ना लालच जिसे सुहाता है,
प्रभु के सारथी होने पर भी, धनुष खुद ही उठाता है |
हो सामने अपने मगर, धर्म के लिए रण में जाता है,
सुसज्जित यौवन से भरी, अप्सरा को कहता माता है |
आयुष शर्मा
है अर्जुन हर एक वीर वो, जो अज्ञातवास भी जाता है,
गलती पर पश्तचाप के लिए, तन को अपने तपाता है |
किरदार अनूठे निभाता है, लेकिन संयम भी रखता है,
उसके धीरज को देख कर, ना कोई उसे परखता है |
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