यहां नग्न होती नीतियां हैं
न्याय भवन में नग्न सत्य है
काले वस्त्रों में खड़ा दशानंन
स्वर्ण, अर्थ का अधिपत्य है
दुशासन को करो सुसज्जित
शकुनी जहां दरबान बने
शांतिदूत जहां स्वयं विनाशक
कौरव सेना का मेहमान बने
हे ! द्रोपदी स्वयं शक्ति बनों
अब कृष्ण जन्म नहीं लेते
देवकी वही अभागन है
दहलीज पे कंस खड़े रहते
दंड दंड में दंडित कर उनको
खंड खंड कर, खंडित कर
जला स्वाभिमान का अग्नि कुंड
काली का रूप प्रचंडित कर
हे दुर्ग पर बैठे राजन् ! आप न चौकीदार बनो
करो भ्रमंणं अब नरेश ! नारी के तारणहार बनो
कर भेदन् उस अनुच्छेद का, जहां स्त्री अबला रहती हो
अगं-भगं,कर नगर मध्य, नियमों के नवअवतार बनो !
कैलाश रौथांण !!!
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