Friday, November 13, 2020

जागरण गीत - हर्षिता सिंह

सूर्य दीप्ति को तेज हीन 

जब करने लगे श्यामल बदरी 
जब बिना चन्द्र ही यात्रा में
निकल पड़ी हो विभावरी ।

लिखते जाना तुम अविरत 
दिवा के आगमन गीत  
ओज तेज के परि पूरक 
चिर शक्ति के जो हों प्रतीक ।

जो राम सेतु के पत्थर हों 
भव सागर में भी ना डूबें 
हों अटल भक्ति प्रहलाद की वो 
जो जलकर के भी ना छूटें ।

आकाशगंगा में विद्यमान 
ध्रुव तारे जैसे दीप्तिमान 
वो गीत बने रथ का पहिया 
घायल अभिमन्यु का स्वाभिमान ।

सूर्य के सातों अश्वों से 
जो तीव्र, धवल, बलशाली हों 
वो गीत हों लाठी का संबल 
जिनसे जन्मी आज़ादी हो ।

द्वेष से जब सृष्टि में 
अनुराग गौड़ हो जाएगा 
वो गीत तब गांडीव बन 
खुद पर विश्वास सिखाएगा ।

संघर्ष तरू की मंजरी से 
मांग कर के बल लिखना 
वातायन में पथ भूला है आज 
उस गीत का तुम कल लिखना ।

तिरस्कार से आहत हो 
तुम मौन ना होना आज प्रिए 
नभ से पर्वत तक गूंजे जो 
उस गीत का हो निर्माण प्रिए । 


  हर्षिता सिंह 
रायबरेली

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