वंश को आगे बढ़ाती है,
घर की लक्ष्मी कहलाती है।
सबकी इज्जत करती है,
मां-बाप की सेवा करती है।।
पति को पिता की संज्ञा-
दिलवाकर खुशी प्रदान करती है।
प्रसव के समय मौत को भी,
चुनौती देकर मुस्कुराती है।।
अपने कर्तव्य का पालन कर,
परिवार की नींव रखती है।
अपने माँ-बाप को छोड़कर,
अपने पति के घर जाती है।।
अपने व्यवहार से पति का-
समाज मे सम्मान बढ़ाती है।
पृथ्वी की तरह धैर्यशाली है,
वह दिखने में आस्थावाली है।
वह संस्कारित दिखती सर्वथा है,
वह परम्परा है, और प्रथा है।।
घिसती और निखरती है,
जैसा साँचा वैसा ढलती है।
घर को रोशन करती है,
अक्सर स्वयं पिघलती है।।
मेहनत करने को आमादा है,
सब खुश रखने का इरादा है।
इसीलिए इनको मान दें,
सबसे अधिक इन्हें सम्मान दें।।
-यमुना धर त्रिपाठी
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