कहते हैं पारिजात स्वर्ग से आया है ,
मेरे बगीचे के वृक्ष ने मुझे हर बरस यह याद दिलाया है
शीत से ग्रीष्म तक मानो यह गहरी नींद सोता है
वर्षा की रिमझिम से सिहर कर उठता है,
शरद के आने पर यह पूर्ण चैतन्य होता है
स्वर्ग में शायद सदा शरदका ही मौसम रहता है ?
वर्षा से धुल -पुँछ यह नव -पत्र पहनता है
मन में भर नव-उमंग ,नई कलियों से सजता है,
छूट गई है शायद इसकी प्रिया स्वर्ग में ही उसकी प्रतीक्षा में तत्पर हो उठता है
अंजुली में भरे सफेद फूलों के गजरे,
संध्या सेही प्रियतमा की बाट यह जोहता है,
शरद भर रहता है यही हाल इसका
परन्तु!
नित्य ही प्रतीक्षा का फल शून्य होता है!
भर जाता है हृदय जब विरह की असह्य वेदना से ,भोर में यह दग्ध प्रेमी रक्त के आंसू रोता है!
स्वर्ग से क्षिप्त हुए इस बेचारे पादप का पृथ्वी पर प्रतिवर्ष यही हाल होता है,
धरती पर बिखरे देख हरसिंगार के ये फूल प्रेमी की पीड़ा का अनुमान होता है
स्वर्ग में बैठी विरहिणी -मानिनी सखी के लिए यह विरही प्रेमी हर निशिमें रोता है।
कभी-कभी कोई करुणा से द्रवित हो ,यह बिखरे फूल उठा झोली में भरता है ,
और उन फूलों को देव को समर्पित कर ,चरणों में उसके श्रद्धानत होता है
सोचती हूं देख कर यह ,काश !ऐसा हो जाए,पारिजात का निवेदन फलीभूत होजाए,युग युगांतर की प्रतीक्षा संपूर्ण हो जाए,
इस सनातन प्रेमी को इसकी प्रिया मिल जाए।।।।।
सरोजिनी पाण्डेय
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