अलगाव की
भावनाए भड़क रही हैं
भाषावाद की चिमनियाँ
सुलग रही हैं
वोट बैंक के लालच में
विषबेल जो
पनप रही है
धीरे-धीरे-धीरे जो
कंगूरे पर चढ़ रही है
कल क्या जाने
दृश्य दिखायेगी वह
क्या जाने कल क्या
रूप लेकर आयेगी वह
महाराष्ट्र में कभी
ठाकरे चिल्लाता है
कभी माओवाद
अपने गले फाड़ता है
कभी नक्सलवादी करते हैं
नक्सलवाद ज़िन्दाबाद
खड़े होकर
भारत के सीने पर
आज........................
देश का चाहे जो कुछ भी हो
चाहे वो स्वाहा भो जाये
चाहे उसकी हवन हो चाहे
चाहे उसे कफन मिल जाये
चाहे वो मिट्टी में मिल जाये
चाहे धूल-धूसरित हो जाये
राजनीति के कारण
कोई उसकी परवाह नही करेगा
चाहे क्यों न भारत पुनः गुलाम हो जाये
इस अखण्ड देश में
भाषायी विविधता
के बावजूद भी
राष्ट्रीय एकता
पलती थी
भाषा अलग होकर भी
भूषा अलग होकर भी
अन्तस् की भावनाएँ मिलती थीं
पर आज उन भावनाओं को
गरम जल से सींचकर
उन पर अलगाववाद के बीज बोये
जा रहे हैं
2 comments:
अनुमोदन करता हूँ आप की राष्ट्र भक्ति का!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- बूंद बूंद से घट भरे. आज आपकी एक छोटी सी टिप्पणी, एक छोटा सा प्रोत्साहन, कल हिन्दीजगत को एक बडा सागर बना सकता है. आईये, आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!!
बहुत अच्छा लिखा है . भाव भी बहुत सुंदर है. पर्याप्त जानकारी भी है. जारी रखें
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