Thursday, September 4, 2008

अति कोई नहीं सह सकता

कलकल बहती
छलछल बह्ती
निशिदिन है जो चलती रहई
मानसर से मिलती रहती
वो है सरिता
अनवरत्
विना रुके
विना थके
जो चलती रहती
वो है सरिता
मनवता को जीवन देती
प्रकृति में जीवन भरती
वो है सरिता
वृक्षों का सिंचन करती
धरती को उर्वर करती
वो है सरिता
प्यास बुझाती
हर प्यासे हा
भेदभाव वह तनिक न करती
जो निशिदिन है चलती रहती
वो है सरिता
गिरि गह्वर से
सतत प्रवाहमान
कभी नहीं जिसको अभिमान
सेवा करती मानवता का
नही कोई प्रतिकर लेती
वो है सरिता
पर मानव
अत्याचारी हो
करता रहता जिसका शोषण
करता निशिदिन जिसका दोहन
पर सदियों तक उफ़
तक न जो करती
वो है सरिता
शोषित हो कर भी जो जीवित
तनिक नही जो हुई कुपित
वो है सरिता
सदियों तक जिसका जल सोखा
जिसको दिया हमेशा धोखा
पर जिसनें अपना प्रवाह न रोका
रही अनवरत् बहती
वो है सरिता
पर……
अति होने से प्रलय है आता
प्रलय आने से
परिवर्तन होता है
परिवर्तन होने से
ताण्डव नर्तन है होता
आकिर वह भी कब तक सहती
अनवरत् शान्ति से बहती
वो है सरिता
आज मानवों के अत्याचारों से
उसके क्रूरतम व्यवहारों से
कुपित हो वह
धारण कर चुकी है
रौद्र रूप
विकराल स्वरूप
देखो वह है अट्टाहास करती
वो है सरिता
पर…………..
इस कार्य पर
हमें दुःख हो रहा
क्यों हो रहा है
इसलिये नहीं कि
उसने रौद्र रूप क्यों धारण किया
नही करना चाहिये था
वह और अत्याचार सहती
वो है सरिता
हमें दुःख सिर्फ़ इसलिये हो रहा है
कि उसने
निर्दोषों पर कहर बरपा
निर्दोषों को ही
अपना रौद्र रूप दिखाया
दोषी तो आज भी
एयर कण्डीशनरों में बैठे
मज़ा ले रहे हैं
उनके किये का सज़ा
निर्दोष भुगत रहे हैं
जब प्रकृति भी डरती है
कोप करनें को
दोषियों पर
सज़ा देने को
दोषियों को
तो मानव- निर्मित न्यायालय के
न्यायाधीश किसी
मालदार चिड़िया को
सज़ा देने में क्यों न डरें?
उन्हें तो डरना ही चाहिये
पर यदि मानव
स्वयं को
प्रकृति विजेता मानता है
तो न्यायाधीशों को
बिल्कुल नही डरना चाहिये
निर्भीक हो
दोषियों को
सज़ा सुनाना चाहिये
जैसे कल
बी एम डब्ल्यू रन एण्ड हिट काण्ड में
दोषियों को सुनायी गयी है
प्रकृति यदि दोषियों को
सज़ा नही दे सकती
तो उस पर विजयी मानव को
अवश्य सज़ा देनी चाहिये
तभी इस विजय की कोई
सार्थकता होगी।
अन्यथा हर गली में
ताण्डव मचेगा
और मचाने वाली
वही होगी
जो है सरिता
क्योंकि अति
कोई नही सह सकता ।

1 comment:

संगीता पुरी said...

बहुत ही अच्छा लिखा है।