Thursday, September 4, 2008

हम इस सदी के मानव हैं

प्रकृति कठपुतली है
हमारे हाथों की
यह क्रान्ति आ रही है
हमारे बातों की
हम गर्व से देखे जाते हैं
महफिल में सराहे जाते हैं
हम इस सदी के मानव हैं
दुनिया टिकी है
हमारे कन्धों पर
पर हमें कोई दर्द नही होता
क्योंकि………………
दर्द की अनुभूति के लिये
भावनायें चाहिये
और हमारी भावनाओं का
कत्ल कर दिया है
हमारे “ सभ्य पूर्वजों” नें
जानना चाहते हो
कि वे कौन हैं
जिन्होंने कत्ल किया
हमारी भावनाओं का
सभ्यता की दुहाई देकर
प्रगति की दुहाई देकर
यदि हाँ तो सुनो
वे हैं…..
रेने देकार्ट और न्यूटन
तथा उनके अनुयायी
जिन्होंने छीन ली हमारी मौलिकता
और दे दी हमको
थोपी हुई कृत्रिमता
जिन्होंने छीन लिया
हमारे बचपन की
बाललीलाओं को
और बना दिया हमें
“जाब ओरियन्टेड”
सारी प्रकृति को
हमारे कदमों में रखने का
स्वप्न दिखाया हमें
पर रह गये “ढाक के तीन पात”
अब उनकी कृपा का यह
सुपरिणाम होगा
कि कोई बालक
कभी कृष्ण सा माखनचोर
नही बन पायेगा
न कोई पुत्र
राम सा आज्ञाकारी
हो पायेगा
क्योंकि ये सब “टाइम वेस्टिंग” है
जब जाब की टेंशन है
तो टाइम बचाना है
अन्यथा अरबपतियों की सूची में
नाम कैसे हो पायेगा
अगर छोटी उम्र में
कहीं काम न मिले
तो थोड़ी सी कलाकारी दिखाकर
फिल्मों में तो एक्टिंग
किया ही जा सकता है
किसी रियलिटी शो में तो
भाग लिया ही जा सकता है
अधिक पढाई से भी क्या होगा
वो तो बुद्धजीवियो का काम है
हमकों तो
मल्टीनेशनल कम्पनियों को ही देखना है
अतः कोई
प्रोफेशनल कोर्स ही कर लेते हैं
हमे बुद्धजीवी बनकर
लोकमंगल से क्या काम
उससे हमारा पेट
थोड़े ही भरेगा
न ही हमारा नाम
अरबपतियों की लिस्ट में होगा
बुद्धजीवी तो
बाद में भी बना जा सकता है
क्योंकि पैंसे में
विश्व स्तर का बुद्धिजीवी बनाने की
ताकत तो है ही
तो क्यो न पैसा बनाया जाये
इसीलिये………
हमारी भावनाओं को
मार दिया गया है
और इसीलिये
हमारे कन्धों पर जो भार है
उससे हमें दर्द नही होता
क्योकि दर्द के लिये भावनायें चाहिये
हमें दूसरे से क्या लेना
कहीं सूखा पड़े,
कहीं बाढ़ आये
कहीं तूफान आये
कहीं हत्या हो
कहीं लूट हो
कहीं डकैती हो
कहीं बम फूटे
हमारे सीनों मे हलचल नहीं होती
क्योंकि किसी हलचल के लिये
भावनाएँ चाहिये
जो मर चुकी हैं
मरकर दफ़न हो चुकी हैं
हाँ
यदि ज़रूरी हो तो हम
घड़ियाली आँसू बहा सकते हैं
आँसुओं के लिये प्याज़ व ग्लिसरीन
अपनी आँखों में लगा सकते हैं
या और कोई
हार्मलेस हथकण्डा भी आज़मा सकते हैं
क्योंकि हम इसके आदी हैं
पर ऎसा हम हमेशा नही करेंगे
ऎसा हम तभी करेंगे
जब हमारा लाभ होगा
क्योंकि बिना लाभ के
हम कुछ भी नही करते

1 comment:

संगीता पुरी said...

बहुत ही अच्छा लिखा है।