Thursday, September 11, 2008

और आज अर्धशतक बाद जब होते हैं उसी घाटी में धमाके

आकाश में पक्षी उड़ रहे थे
सूरज की किरणें
अपनी सुनहली आभा
बिखेर रही थीं
सहसा क्या हुआ
भर गया गगन
धूल के कणों से
पक्षियों के शोर से
खो गयीं सूरज की
रुपहली किरणें
जिन्हें देखते थे लोग
अपनें मकानों के अन्दर से
उन किरणों के खोने से
भयभीत लोग
क्या हुआ-क्या हुआ की
रट लगाये
चिल्लाते
सड़कों पर
स्तब्ध घूम रहे थे
सबकी निगाहे
भयभीत हो
एक-दूसरे को आश्वासन दे रही थी
आश्चर्य से भरे थे लोग
कि सहसा क्या हुआ
कहाँ खो गयी सूरज की रोशनी
कैसे छा गयी ये बारूदी धुन्ध
और...........
आज..............
अर्धशतक बाद
जब होते हैं......
उसी घाटी में.......
धमाके...............
जब धुन्ध छाती है
सूरज की किरणों पर
तब किसी को
नही होता
कोई आश्चर्य
क्योंकि आज वहाँ की
हवा
सूरज
सूरज की रोशनी
रात का अँधियारा
वहाँ के लोग
बच्चे
बूढ़े
जवान
सभी
बारूद के इन धमाकों को
सुनने के
अभ्यस्त हो गये हैं
अब किसी को इनसे
कोई आश्चर्य नही होता