Friday, September 5, 2008

कभी- कभी हमें भी कुछ "पूजा" चढ़ाया करो।

तुमको देखा और तुम
उड़ गये
ये अन्याय करना
तुमने कहाँ से सीखा
वाह जी नायाब है
तुम्हार ये तरीका
कभी पकड़ में
तो आ जाया करो
हमारे हाथों अपनी जान
कभी-कभी गँवाया करो
तुम रोज़ हमारा खून चूसते हो
चूसकर भाग जाते हो
कभी अपनी शहादत भी
दे दिया करो
वरना जानते हो
हम मानव हैं
तुमसे भी खतरनाक है
जब हम काटेगे तो
तनिक पता भी न चलेगा
तुम क्या तुम्हारे वंशजों का भी
सत्यानाश हो जायेगा
अतः गनीमत इसी में है कि
कभी- कभी हमें भी
कुछ "पूजा" चढ़ाया करो।

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