Friday, September 5, 2008

चाँदनी रात की हँसी हमें भाती नहीं

चाँदनी रात की हँसी हमें भाती नहीं

जब तक हामारे खेमे में अँधेरा है

हमें पूर्णिमा बिल्कुल सुहाती नहीं

जब तक अमावस्या का अँधेरा है

बातें बनाने से कुछ नही होगा

जब तक हम हकीकत पर उतर न आयें

तुम्हें आजमाने से कुछ नही होगा

जब तक हम स्वयं निखर न आयें

मात्र राहत दिलाने से कुछ नही होगा

जब तक सामग्री मेरे घर न आये

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