Thursday, September 4, 2008

युवा पीढ़ी और मैं

स्मृतियाँ मेरे इर्द-गिर्द घूमती हैं
स्टेज शो करती हैं
कैटवाक करती हैं
मेरी आँखे विस्मय से
उन्हें देखती रह जाती हैं
देखते-देखते पता नही कहाँ
शून्य में खो जाती हैं
तब यकायक मैं अपने तज़ुर्बे
और अपने ज़माने पर उतरता हूँ
मेरे दिमाग में कौंधती है तब
मेरे अपने समय की यादें
मेरा अपना अतीत
अतीत की आनन्ददायाक गतिविधियाँ
और तब मैं करने लगता हूँ
वर्तमान और अतीत की तुलना
करने लगता हूँ
समय के साथ हुए परिवर्तनों की गणना
तब मुझे इन युवाओं की
कुछ गतिविधियाँ शूल सी चुभती हैं
मेरे अन्तस् को कचोटती हैं
मुझे व्यथित कर जाती हैं
और मेरा दिमाग चकरा जाता है
कि ये सब क्या हो रहा है
मेरे समय में
हम ऎसे तो नहीं थे
मुझे युवाओं की सब दलीलें
समय की माँग के नाम पर
वे जो देते हैं
फूटी आँखों नही सुहाती
मेरे जिह्वा पर नाचने लगते हैं
इनके विरोध के शब्द
मैं मौन नही रह पाता
भँग करके अपने मौन को
इनको समझाने लगता हूँ
पर जब मैं देखता हूँ
कि मेरे करोड़ो शब्दों के उपदेश के बाद
भी हालात कुछ सुधर नहीं रहे
तो हारकर मौन हो जाता हूँ
और परिस्थितियों के अनुरूप
अपने को ढालकर जीता रहता हूँ
क्योंकि युवा पीढ़ी से मैं मज़बूर हूँ
उनको मै सुधार तो नही सकता
पर उनकी बातों
उनकी गतिविधियों
उनकी कार्यशैली को
नज़रान्दाज़ तो कर सकता हूँ
सोंचता हूँ
उन्हें उनके हाल पर छोड़ दें
समय उन्हें सब कुछ सिखा देगा।

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