Friday, September 12, 2008

तुम न आई और मैं बाट जोहता रहा .........................

तुमने कहा था कि.....................
रात के अंधकार मे मिलोगी तुम
मैंने भी सुना था कि
रात के अंधकार में मिलोगी तुम
दुर्भाग्य से उस दिन
जिस दिन का ये
वाकया है
पूनम की रात थी
अंधेरी रात तो
बहुत दूर की बात थी
फिर भी
पत्थर रख
अपने कलेजे पर
मैंने तुम्हारी यह
शर्त बिना शर्त
स्वीकार की
तब से न जाने
कितनी अंधेरी रातें
बितायी मैंने इन्तज़ार की
उसी दिन से मैं
अमावस की बाट जोहता रहा
बस तुमको ही खोजता रहा
न जाने तब से कितने अमावस आये
कितनी पूनम की रातें बीतीं
मैं पागलों सा
बस तुम्हारा ही
हाँ बस तुम्हारा ही
बाट जोहता रहा
पर आज हज़ारों पूनम
और हजारों अमावस
बीतने के बाद भी
तुम न आयी
और मैं ..............
पागलों सा बाट जोहता रहा
पर ये देखकर भी
तुम्हे दया न आयी
उस पूनम की रात से
जिसकी यादें मैं
आज तक सँजोता रहा
मुझे न पड़ी दिखाई कभी
तुम्हारी परछाईं
क्योंकि तुम निष्ठुर !
वचन देकर
कभी लौटकर न आयी
और मैं..................
और मैं................
पागलों सा
तुम्हारी प्रतीक्षा करता रहा
दिनों को गिनता रहा
पर कभी वो अंधेरी रात न आई
जिसमें तुम मिलती
अन्ततः तुम न आई
और मैं.........................
बाट जोहता रहा

1 comment:

ममता त्रिपाठी said...

प्रतीक्षा में जो आनन्द है वह अन्यत्र कहाँ................................................धन्यवाद इस शब्द का....इस कर्म का....जिसने शताब्दियों से अनेक काव्य-प्रतिभावों को मुखरित किया है।